Ghar Jamai in Hindi ||Munshi premchand||story

||    GHAR JAMAI    ||

Samsung Galaxy M40 (Midnight Blue, 6GB RAM, 128GB Storage) – Rishi ...

         Samsung Galaxy M40 (Midnight Blue, 6GB RAM, 128GB Storage)

Best Publishing Company - [It's Back!] NOAA Diving Manual is Restocked


हरिथन जेठ की दुपहरी में ऊख में पानी देकर आया और बाहर बैठा रहा घर में से धुआं उठता नज़र आता था छन - छन की आवाज़ भी रही थी उसके दोनों साले उसके बाद आये और घर में चले गये दोनों सालों के लड़के भी आये और उसी तरह अन्दर दाखिल हो गये , पर हरिधन अन्दर जा सका इथर एक महीने से उसके साथ यहां जो बरताव हो रहा था और विशेषकर कल उसे जैसी फटकार सुननी पड़ी थी , वह उसके पांव में बेड़ियां - सी डाले हुए था कल उसकी सास ही ने तो कहा था , मेरा जी तुमसे भर गया , मैं तुम्हारी जिन्दगी भर का ठेका लिये बैठी हूं क्या ? और सबसे बढ़कर अपनी स्त्री की निष्ठुरता ने उसके हृदय के टुकड़े कर दिये थे वह बैठी यह फटकार सुनती रही , पर एक बार भी तो उसके मुंह से निकला , अम्मां ! तुम क्यों इनका अपमान कर रही हो ? बैठी गट - गट सुनती रही शायद मेरी दुर्गति पर खुश हो रही थी इस घर में वह कैसे जाये ? क्या फिर वही गालियां खाने , वही फटकार सुनने के लिये ? और आज इस घर में जीवन के दस साल गुजर जाने पर यह हाल हो रहा है मैं किसी से कम काम करता हूँ ? दोनों साले मीठी नींद सोते रहते हैं और में बैलों को सानी - पानी देता हूं , छांटी काटता हूं वहां सब लो पल - पल पर चिलम पीते हैं , मैं आंखे बंद किये अपने काम में लगा रहता हूं सन्ध्या समय घरवाले गाने बजाने चले जाते हैं मैं घड़ी रात तक गाय - भैंसे दुहता हूं उसका यह पुरस्कार मिल रहा है कि कोई खाने को भी नहीं पूछता उलटे और गालियां मिलती हैं उसकी स्त्री घर में से डोल लेकर निकली और बोली , ' जरा इसे कुएं से खींच लो , एक बूंद पानी नहीं है

                         Samsung Galaxy M40 (Midnight Blue, 6GB RAM, 128GB Storage) – Rishi ...

              

Samsung Galaxy M40 (Midnight Blue, 6GB RAM, 128GB Storage)

                                                 Best Publishing Company - [It's Back!] NOAA Diving Manual is Restocked

' हरिधन ने डोल लिया और कुएं से पानी भर लाया उसे जोर की भूख लगी हुई थी समझा , अब खाने को बुलाने आयेगी , मगर स्त्री डोल लेकर अन्दर गयी , तो वहीं की हो रही हरिधन थका - मांदा , क्षुधा से व्याकुल पड़ा सो रहा ।सहसा उसकी स्त्री गुमानी ने आकर उसे जगाया । हरिधन ने पड़े - पड़े ही कहा , ' क्या है ? क्या पड़ा भी न रहने देगी या और पानी चाहिए ? ' गुमानी कटु स्वर में बोली , ' गुरति क्यों हो , खाने को बुलाने आयी हूं । ' हरिधन ने देखा , उसके दोनों साले और बड़े साले के दोनों लड़के भोजन किये चले जा रहे थे । उसकी देह में आग लग गयी । मेरी अब यह नौबत पहुंच गयी कि इन लोगों के साथ बैठकर खा भी नहीं सकता । ये लोग मालिक हैं । मैं इनकी जूठी थाली चाटने वाला हूं । मैं इनका कुत्ता हूं , जिसे खाने के बाद टुकड़ा रोटी डाल दी जाती है । यही घर है , जहां आज के दस साल पहले उसका कितना आदर - सत्कार होता था । साले गुलाम बने रहते थे । सास मुंह जोहती रहती थी । स्त्री पूजा करती थी । तब उसके पास रुपये थे , जायदाद थी । अब वह दरिद्र है । उसकी सारी जायदाद को इन्हीं लोगों ने कूड़ा कर दिया । अब उसे रोटियों के भी लाले हैं । उसके जी में एक ज्वाला - सी उठी कि इसी वक्त अन्दर जाकर सास को और साली को भिगो - भिगोकर लगाये , पर जब्त करके रह गया । पड़े - पड़े बोला , ' मुझे भूख नहीं है । आज न खाऊंगा । ' गुमानी ने कहा , ' न खाओगे मेरी बला से , हां नहीं तो । खाओगे , तुम्हारे ही पेट में जायेगा , कुछ मेरे पेट में थोड़े ही चला जायेगा । ' हरिधन का क्रोथ आंसू बन गया । यह मेरी स्त्री है , जिसके लिये मैंने अपना सर्वस्व मिट्टी में मिला दिया । मुझे उल्लू बनाकर यह सब अब निकाल देना चाहते हैं । वह अब कहां जाये ! क्या करें । उसकी सास आकर बोली , ' चलकर खा क्यों नहीं लेते जी , रूठते किस पर हो । यहां तुम्हारे नखरे सहने का किसी में बूता नहीं है । जो देते हो , वह मत देना और क्या करोगे । तुमसे बेटी व्याही है , कोई तुम्हारी जिन्दगी का ठेका नहीं लिया है । ' हरिधन ने मर्माहत होकर कहा , ' हां , अम्माँ ! मेरी भूल थी कि मैं यही समझ रहा था । अब मेरे पास क्या है कि तुम मेरी ज़िन्दगी का ठेका लोगी ? जब मेरे पास धन था , तब सब कुछ आता था । अब दरिद्र हूं , तुम क्यों बात पूछोगी ? ' बूढी सास भी मुंह फुलाकर भीतर चली गयी । बच्चों के लिये बाप एक फ़ालतू - सी चीज़ , ' एक विलास की वस्तु , है , जैसे घोड़े के लिये चने या बाबुओं के लिये मोहनभोग । रोटी - दाल , मोहनभोग उम्र - भर न मिले , तो किसका नुकसान है , मगर एक दिन रोटी - दाल के दर्शन न हों , तो फिर देखिये , क्या हाल होता है । पिता के दर्शन कभी - कभी शाम सवेरे हो जाते हैं , वह बच्चे को उछालता है , दुलारता है , कभी गोद में लेकर या उंगली पकड़कर सैर कराने ले जाता है और बस , यही उसके कर्तव्य की इति है । वह परदेश चला जाये , बच्चे को परवा नहीं होती , लेकिन मां तो बच्चे का सर्वस्व है । बालक एक मिनट के लिये भी उसका वियोग नहीं सह सकता ।

                              Samsung Galaxy M40 (Midnight Blue, 6GB RAM, 128GB Storage) – Rishi ...

             

Samsung Galaxy M40 (Midnight Blue, 6GB RAM, 128GB Storage)

                                                      Best Publishing Company - [It's Back!] NOAA Diving Manual is Restocked

 पिता कोई हो , उसे परवा नहीं , केवल एक उछालने - कुदाने वाला आदमी होना चाहिए , लेकिन माता तो अपनी ही होनी चाहिए , सोलहों - आने अपनी । वही रूप , वहीं रंग , वही प्यार , वही सब कुछ । वह अगर नहीं है , तो बालक के जीवन का स्रोत मानो सूख जाता है , फिर वह शिवा का नन्दी है , जिस पर फूल या जल चढ़ाना लाज़िमी नहीं , अख्तियारी है । हरिधन की माता का आज दस साल हुए , देहान्त हो गया था । उस वक्त उसका विवाह हो चुका था । वह सोलह साल का कुमार था । पर मां के मरते ही उसे मालूम हुआ कि मैं कितना निस्सहाय हूं । जैसे उस घर पर उसका कोई अधिकार ही न रहा हो । बहनों के विवाह हो चुके थे । भाई कोई दूसरा न था । बेचारा अकेले घर में जाते भी डरता था । मां के लिये रोता था , पर मां की परछाई से डरता था । जिस कोठरी में उसने देह - त्याग किया था , उधर वह आंखें तक न उठाता । घर में एक बुआ थी , वह हरिधन को बहुत दुलार करती । हरिधन को अब दूध ज्यादा मिलता , काम भी कम करना पड़ता । बुआ बार - बार पूछती , ' बेटा ! कुछ खाओगे ? बाघ भी अब से उसे ज़्यादा प्यार करता । उसके लिये अलग एक गाय मंगवा दी । कभी - कभी उसे कुछ पैसे देते कि जैसे चाहे खर्च करे । पर इन मरहमों से वह घाव न पूरा होता था , जिसने उसकी आत्मा को आहत कर दिया था । वह दुलार और प्यार उसे बार - बार मां की याद दिलाता । मां की घुड़कियों में जो मज़ा था , वह क्या इस दुलार में था ? मां से मांगकर , लड़कर , ठुनककर , रूठकर लेने में जो आनन्द था , वह क्या इस भिक्षादान में था ? पहले वह स्वस्थ था , मांग - मांगकर खाता था , लड़ - लड़कर खाता , अब वह बीमार था , अच्छे - से - अच्छे पदार्थ उसे दिये जाते थे , पर भूख न थी । साल भर तक वह इस दशा में रहा । फिर दुनिया बदल गयी । एक नई स्त्री , जिसे लोग उसकी माता कहते थे , उसके घर में आयी और देखते - देखते एक काली घटा की तरह उसके संकुचित भूमण्डल पर छा गयी , ' सारी हरियाली , सारे प्रकाश पर अन्धकार का परदा पड़ गया । हरिधन ने इस नकली मां से बात तक न की , कभी उसके पास गया तक नहीं । एक दिन घर से निकला और ससुराल चला आया । बाप ने बार - बार बुलाया , पर उनके जीते - जी वह फिर उस घर में न गया । जिस दिन उसके पिता के देहांत की सूचना मिली , उसे एक प्रकार का ईर्ष्यामय हर्ष हुआ । उसकी आंखों में आंसू की एक बूंद भी न आयी । इस नये संसार में आकर हरिधन को एक बार फिर मातृ - स्नेह का आनन्द मिला । उसकी सास ने ऋषि - वरदान की भांति उसके शून्य जीवन को विभूतियों से परिपूर्ण कर दिया । मरुभूमि में हरियाली उत्पन्न हो गयी । सालियों की चुहल में , सास के स्नेह में , सालों के वाक् - विलास में और स्त्री के प्रेम में उसके जीवन की सारी आकांक्षायें पूरी हो गयी । सास कहती , ' बेटा ! तुम इस घर को अपना ही समझो , तुम्ही मेरी आंखों के तारे हो । वह उससे अपने लड़कों की , बहुओं की शिकायत करती । वह दिल में समझता था , सासजी मुझे अपने बेटों से भी ज़्यादा चाहती हैं । बाप के मरते ही वह घर गया और अपने हिस्से की जायदाद को करके रुपयों की थैली लिये फिर आ गया । अब उसका दूना आदर - सत्कार होने लगा । उसने अपनी सारी सम्पत्ति सास के चरणों में अर्पण करके अपने जीवन को सार्थक कर दिया । अब तक उसे कभी - कभी घर की याद आ जाती थी , अब भूलकर भी उसकीयाद न आती , मानो वह उसके जीवन का कोई भीषण काण्ड था , जिसे भूल जाना ही उसके लिये अच्छा था । वह सबसे पहले उठता , सबसे ज्यादा काम करता । उसका मनोयोग , उसका परिश्रम देखकर गांव के लोग दाँतों उंगली दबाते थे । उसके ससुर का भाग्य बखानते , जिसे ऐसा दामाद मिल गया । लेकिन ज्यों - ज्यों दिन गुजरते गये , उसका मान - सम्मान घटता गया । पहले देवता था , फिर घर का आदमी , अन्त में घर का दास हो गया । रोटियों में भी बाधा पड़ गयी , अपमान होने लगा । अगर घर के लोग भूखों मरते और साथ ही उसे भी मरना पड़ता , तो उसे जरा भी शिकायत न होती । लेकिन जब वह देखता कि लोग मूछों पर ताव दे रहे हैं , केवल मैं ही दूध की मक्खी बना दिया गया हूं , तो उसके अन्तःस्तल से एक लम्बी , ठण्डी आह निकल जाती । अभी उसकी उम्र कुल पच्चीस ही साल की तो थी । इतनी उम्र इस घर में कैसे गुजरेगी ? और तो और , उसकी स्त्री ने भी आंखें फेर लीं , यह उस विपत्ति का सबसे क्रूर दृश्य था । हरिधन तो उधर भूखा - प्यासा चिन्ता - दाह में जल रहा था , इधर घर में सासजी और दोनों सालों में बातें हो रही थी । गुमानी भी हां में हां मिलाती जाती थी । बड़े साले ने कहा , ' हम लोगों की बराबरी करते है । यह नहीं समझते कि किसी ने उनकी जिन्दगी - भर का बीड़ा थोड़े ही लिया है । दस साल हो गये । इतने दिनों में क्या दो - तीन हजार न हड़प गये होंगे ? ' छोटे साले बोले , ' मजूर हो , तो आदमी घुड़के भी , डांटे भी , अब इनसे कोई क्या कहे । न जाने इनसे कभी पिण्ड छूटेगा भी या नहीं ? अपने दिल में समझते होंगे , मैंने दो हज़ार रुपये नहीं दिये हैं ? यह नहीं समझते कि उनके दो हज़ार कब के उड़ चुके । सवा सेर तो एक जून को चाहिए । ' सास ने गम्भीर भाव से कहा , ' बड़ी भारी खोराक है । ' गुमानी माता के सिर से जूं निकाल रही थी । सुलगते हुए हृदय से बोली , ' निकम्मे आदमी को खाने के सिवा और काम ही क्या रहता है । ' बड़े , ' खाने की कोई बात नहीं है । जिसको जितनी भूख हो उतना खाये , लेकिन कुछ पैदा करना चाहिए । यह नहीं समझते कि पहुनई में किसी के दिन कटे हैं । ' छोटे , ' मैं तो एक दिन कह दूंगा , अब आप अपनी राह लीजिये , आपका क़र्जा नहीं खाया है । ' गुमानी घरवालों की ऐसी - ऐसी बातें सुनकर अपने पति से द्वेष करने लगी थी । अगर वह बाहर से चार पैसे लाता , तो इस घर में उसका कितना मान - सम्मान होता , वह भी रानी बनकर रहती । न जाने क्यों कहीं बाहर जाकर कमाते उनकी नानी मरती है । गुमानी की मनोवृत्तियाँ अभी तक बिल्कुल बालपन की - सी थीं । उसका अपना कोई घर न था । उसी घर का हित - अहित उसके लिये भी प्रधान था । वह भी उन्हीं शब्दों में विचार करती , इस समस्या को उन्हीं आंखों से देखती , जैसे उसके घर वाले देखते थे । सच तो है , दो हज़ार रुपये में क्या किसी को मोल ले लेंगे ? दस साल में दो हजार रुपये होते ही क्या है ? दो सौ ही तो साल - भर के हुए । क्या दो आदमी साल - भर में दो सौ भी न खायेंगे ? फिर कपड़े - लत्ते , दूध - घी सभी कुछ तो है । दस साल हो गये , एक पीतल का छल्ला नहीं बना । घर से निकलते तो जैसे इनके प्राण निकलते हैं । जानते हैं , जैसे पहले पूजा होती थी , वैसे ही जन्म - भर होती रहेगी । यह नहीं सोचते कि पहले और बात थी , अब और बात है । बहू भी पहले ससुराल जाती है , तो उसका कितना महातम होता है । उसके डोली से उतरते ही बाजे बजते हैं , गांव - मुहल्ले की औरतें उसका मुंह देखने आती हैं और रुपये देती हैं । महीनों उसे घर - भर से अच्छा खाने को मिलता है , अच्छा पहने को , कोई काम नहीं लिया जाता , लेकिन छ : महीने बाद कोई उसकी बात भी नहीं पूछता , वह घर - भर की लौड़ी हो जाती है । उनके घर में मेरी तो वही गति होती । फिर काहे का रोना । जो यह कहो कि मैं तो काम करता हूं , तो तुम्हारी भूल है , मजूर की और बात है । उसे आदमी डांटता भी है , मारता भी है , जब चाहता है रखता है , जब भी चाहता है निकाल देता है । कसकर काम लेता है । यह नहीं कि जब जी में आया , कुछ काम किया , जब जी में आया , पड़कर सो रहे । हरिधन भी पड़ा अन्दर - ही - अन्दर सुलग रहा था कि दोनों साले बाहर आये और बड़े साहब बोले , ' भैया ! उठो तीसरा पहर ढल गया , कब तक सोते रहोगे ? सारा खेत पड़ा हुआ है । हरिधन चट उठ बैठा और तीव्र स्वर में बोला , ' क्या तुम लोगों ने मुझे उल्लू समझ लिया है ? ' दोनों साले हक्का - बक्का हो गये । जिस आदमी ने कभी ज़बान नहीं खोली , हमेशा गुलामों की तरह हाथ बांधे हाज़िर रहा , वह आज एकायेक इतना आत्माभिमानी हो गया , यह उनको चौंका देने के लिये काफ़ी था । कुछ जवाब न सूझा । हरिधन ने देखा , इन दोनों के कदम उखड़ गये है , तो एक धक्का और देने की प्रबल इच्छा को न रोक सका । उसी ढंग से बोला , ' मेरी भी आंखें है , अन्धा नहीं हूं , न बहरा ही हूं । छाती फाड़कर काम करूं और उस पर भी कुत्ता समझा जाऊं , ऐसे गधे कहीं और होंगे । अब बड़े साले भी गरम पड़े , ' तुम्हें किसी ने यहां बांध तो नहीं रखा है । ' अबकी हरिधन लाजवाब हुआ । कोई बात न सूझी । बड़े ने फिर उसी ढंग से कहा , ' अगर तुम यह चाहो कि जन्म - भर पाहुंने बने रहो और तुम्हारा वैसा ही आदर - सत्कार होता रहे , तो यह हमारे बस की बात नहीं हरिधन ने आंखे निकालकर कहा , ' क्या मैं तुम लोगों से कम काम करता हूं ? " बड़े , ' यह कौन कहता है ? ' हरिधन , ' तो तुम्हारे घर की यही नीति है कि जो सबसे ज्यादा काम करे , वही भूखों मारा जाये ? बड़े , ' तुम खुद खाने नहीं गये । क्या कोई तुम्हारे मुंह में कौर डाल देता ? हरिधन ने होठ चबाकर कहा , ' मैं खुद खाने नहीं गया । कहते तुम्हें लाज नहीं आती । ' ' नहीं आयी थी , बहन तुम्हें बुलाने ? ' हरिधन की आंखों में खून उतर आया , दांत पीसकर रह गया । छोटे साले ने कहा , ' अम्मा भी आयी थी । तुमने कर दिया , मुझे भूख नहीं है , तो क्या करती । सास भीतर से लपकी चली आ रही थी । यह बात सुनकर बोली , ' कितना कहकर हार गयी , कोई उठे न , तो मैं क्या करूं । ' हरिधन ने विष , खून और आग से भरे हुए स्वर में कहा , ' मैं तुम्हारे लड़कों का जूठा खाने के लिये हूं ? मैं कुत्ता हूं कि तुम लोग खाकर मेरे सामने रूखी रोटी का टुकड़ा फेक दो ? ' बुढ़िया ने ऐठकर कहा , ' तो क्या तुम लड़कों की बराबरी करोगे ? ' हरिधन परास्त हो गया । बुढ़िया के एक ही वाक्यहार में उसका काम तमाम कर दिया । उसकी तनी हुई भवे ढीली पड़ गयी , आंखों की आग बुझ गयी , फड़कते हुए नधुने शान्त हो गये । किसी आहत मनुष्य की भांति वह जमीन पर गिर पड़ा । ' क्या तुम मेरे लड़कों की बराबरी करोगे ? ' यह वाक्य एक लम्बे भाले की तरह उसके हृदय में चुभता चला जाता था , ' न हृदय का अन्त था , न उस भाले का ! सारे घर ने खाया , पर हरिधन न उठा । सास ने मनाया , सालियों ने मनाया , ससुर ने मनाया , दोनों साले मनाकर हार गये , हरिधन न उठा । वहां द्वार पर एक टाट पड़ा था , उसे उठाकर सबसे अलग कुएं पर ले गया और जगत पर बिछाकर पड़ा रहा । रात भीग चुकी थी । अनन्त आकाश में उज्ज्वल तारे बालकों की भांति क्रीड़ा कर रहे थे । कोई नाचता था , कोई उछलता था , कोई हंसता था , कोई आंखे मींचकर फिर खोल देता था ।

                          Samsung Galaxy M40 (Midnight Blue, 6GB RAM, 128GB Storage) – Rishi ...

Samsung Galaxy M40 (Midnight Blue, 6GB RAM, 128GB Storage)

                                             Best Publishing Company - [It's Back!] NOAA Diving Manual is Restocked

 रह - रहकर कोई साहसी बालक सपाटा भरकर एक पल में उस विस्तृत क्षेत्र को पार कर लेता था और न जाने कहां छा जाता था । हरिधन को अपना बचपन याद आया , जब वह भी इसी तरह क्रीड़ा करता था । उसकी बाल - स्मृतियां उन्हीं चमकीले तारों की भांति प्रज्वलित हो गयी । वह अपना छोटा - सा घर , वह आम का बाग , जहां वह केरियां चुना करता था , वह मैदान , जहां वह कबढी खेला करता था , सब उसको याद आने लगे । फिर अपनी स्नेहमयी माता की सदय मूर्ति उसके सामने खड़ी हो गयी । उन आंखों में कितनी करुणा थी , कितनी दया थी । उसे ऐसा जान पड़ा , मानो माता आंखों में आंसू भरे , उसे छाती से लगा लेने के लिये हाथ फैलाये उसकी ओर चली आ रही है । वह उस मधुर भावना में अपने को भूल गया । ऐसा जान पड़ा , मानो माता ने उसे छाती से लगा लिया है और उसके सिर पर हाथ फेर रही है । वह रोने लगा , फूट - फूटकर रोने लगा । उसी आत्म - सम्मोहित दशा में उसके मुंह से यह शब्द निकले - अम्मा ! तुमने मुझे इतना भुला दिया । देखो , तुम्हारे प्यारे लाल की क्या दशा हो रही है ? कोई उसे पानी को भी नहीं पूछता । क्या जहां तुम हो , वहाँ मेरे लिये जगह नहीं है ? सहसा गुमानी ने आकर पुकारा , ' क्या सो गये तुम ? ऐसी भी क्या राक्षसी नींद , चलकर खा क्यों नहीं लेते ? कब तक कोई तुम्हारे लिये बैठा रहे । हरिधन उस कल्पना - जगत् से क्रूर प्रत्यक्ष में आ गया । वहीं कुएं की जगत थी , वही फटा हुआ टाट और गुमानी सामने खड़ी कर रही थी , ' कब तक कोई तुम्हारे लिये बैठा रहे । हरिधन उठ बैठा और मानो तलवार म्यान से निकालकर बोला , ' भला , तुम्हे मेरी सुध तो आयी । मैंने तो कर दिया था , मुझे भूख नहीं है । ' गुमानी , ' तो कितने दिन तक न खाओगे ? ' ' अब इस घर का पानी भी न पीऊंगा । तुझे मेरे साथ चलना है या नहीं ? ' दृढ़ संकल्प से भरे हुए इन शब्दों को सुनकर गुमानी सहम उठी । बोली , ' कहां जा रहे हो ? ' हरिघन ने मानो नशे में कहा , ' तुझे इससे क्या मतलब ? मेरे साथ चलेगी या नहीं ? फिर पीछे से न कहना , मुझसे कहा नहीं । ' गुमानी आपत्ति के भाव से बोली , ' तुम बताते क्यों नहीं , कहां जा रहे हो ? ' ' तू मेरे साथ चलेगी या नहीं ? ' ' जब तक तुम बता न दोगे , मैं न जाऊंगी । ' ' तो मालूम हो गया , तू नहीं जाना चाहती । मुझे इतना ही पूछना था , नहीं तो अब तक मैं आधी दूर निकल गया होता । ' यह कहकर उठा और अपने घर की ओर चला । गुमानी पुकारती रही , ' सुन लो , सुन लो । ' पर उसने फिरकर भी न देखा । तीस मील की मंज़िल हरिधन ने पांच घण्टो में तय की । जब वह अपने गांव की अमराइयों के सामने पहुंचा , तो उसकी मातृ - भावना उषा की सुनहरी गोद में खेल रही थी । उन वृक्षों को देखकर उसका विरुल हृदय नाचने लगा । मन्दिर का सुनहरा कलश देखकर वह इस तरह दौड़ा जा रहा था , मानो उसकी माता गोद फैलाये उसे बुला रही हो । जब वह आमों के बाग में पहुंचा , जहां डालियों पर बैठकर वह हाथी की सवारी का आनन्द पाता था , जहां के कच्चे बेरों और लिसोड़ों में एक सर्गीय स्वाद था , तो वह बैठ गया और भूमि पर सिर झुकाकर रोने लगा , मानो अपनी माता को अपनी विपत्ति - कथा सुना रहा हो । वहां की वायु में , वहां के प्रकाश में , मानो उसकी विराट् - रूपिणी माता व्याप्त हो रही थी । 

                            Samsung Galaxy M40 (Midnight Blue, 6GB RAM, 128GB Storage) – Rishi ...

Samsung Galaxy M40 (Midnight Blue, 6GB RAM, 128GB Storage)

                                                   Best Publishing Company - [It's Back!] NOAA Diving Manual is Restocked

वहां की अंगुल - अंगुल भूमि माता के पद - चिह्नों से पवित्र थी , माता के स्नेह में डूबे हुए शब्द अभी तक , मानो आकाश में गूंज रहे थे । इस वायु और इस आकाश में न जाने कौन - सी संजीयनी थी , जिसने उसके शोकात हृदय को फिर बालोत्साह से भर दिया । वह एक पेड़ पर चढ़ गया और उधर से आम तोड़ - तोड़कर खाने लगा । सास के वह कठोर शब्द , स्त्री का वह निष्ठुर आघात , वह सारा अपमान उसे भूल गया । उसके पांव फूल गये थे , तलवों में जलन हो रही थी , पर इस आनन्द में उसे किसी बात का ध्यान न था । प्रेसर की । अनमोल कातियासहसा रखवाले ने पुकारा , ' वह कौन ऊपर चढ़ा है , रे ? उतर अभी , नहीं तो ऐसा पत्थर खींचकर मारूंगा कि वही ठण्डे हो जाओगे । ' उसने कई गालियां भी दीं । इस फटकार और इन गालियों में इस समय हरियन को अलौकिक आनन्द मिल रहा था । वह डालियों में छिप गया , कई आम काट - काट नीचे गिराये , और ज़ोर से ठट्टा मारकर हंसा । ऐसी उल्लास से भरी हंसी उसने बहुत दिन से न हंसी थी । रखबाले को यह हंसी परिचित मालूम हुई । मगर हरिधन यहां कहां ? वह ससुराल की रोटियां तोड़ रहा है । कैसा हंसोढ़ा था , कितना चिबिल्ला । न जाने बेचारे का क्या हाल हुआ ? पेड़ की डाल से तालाब में कूद पड़ता था । अब गांव में ऐसा कौन है ? डांटकर बोला , ' वहां से बैठे - बैठे हंसोगे , तो आकर सारी हंसी निकाल दूंगा , नहीं तो सीधे उतर आओ । ' वह गालियां देते जा रहा था कि एक गुठली आकर उसके सिर पर लगी । सिर सहलाता हुआ बोला , ' यह कौन शैतान है , नहीं मानता । ठहर तो , मैं आकर तेरी ख़बर लेता हूं । ' उसने अपनी लकड़ी नीचे रख दी और बंदरों की तरह चट - पट ऊपर चढ़ गया । देखा , तो हरिधन बैठा मुसकरा रहा है । चकित होकर बोला , ' अरे , हरिधन ! तुम यहां कब आये ? इस पेड़ पर कब से बैठे हो ? दोनों बचपन के सखा वहीं गले मिले । ' यहां कब आये ? चलो , घर चलो । भले आदमी , क्या वहां आम भी मयस्सर होते थे ? ' हरिधन ने मुसकराकर कहा , ' मंगरू ! इन आमों में जो स्वाद है , वह और कहीं के आमों में नहीं है । गांव का क्या रंग - ढंग है ? मंगरू , ' सब चैनचान है , भैया ! तुमने तो जैसे नाता ही तोड़ लिया । इस तरह कोई अपना गांव - घर छोड़ देता है ? जब से तुम्हारे दादा मरे , सारी गिरस्ती चौपट हो गयी । दो छोटे - छोटे लड़के हैं । उनके किये क्या होता है ? ' हरिघन , ' अब उस गिरस्ती से क्या वास्ता है भाई ? मैं तो अपना ले दे चुका । मजूरी तो मिलेगी न ? तुम्हारी गैया ही चरा दिया करूंगा , मुझे खाने को दे देना । ' मंगरू ने अविश्वास के भाव से कहा , ' अरे भैया ! कैसी बातें करते हो , तुम्हारे लिये जान हाजिर है । क्या ससुराल में अब न रहोगे ? कोई चिन्ता नहीं । पहले तो तुम्हारा घर ही है , उसे संभालो । छोटे - छोटे बच्चे हैं , उनको पालो । तुम नयी अम्मा से नाहक डरते थे । बड़ी सीधी है बेचारी । बस , अपनी मां समझो । तुम्हें पाकर तो निहाल हो जायेगी । अच्छा , घरवाली को भी तो लाओगे ? ' हरिधन , ' उसका अब मुंह न देखूगा । मेरे लिये वह मर गयी । ' मंगरू , ' तो दूसरी सगाई हो जायेगी । अबकी ऐसी मेहरिया ला दूंगा कि उसके पैर घो - यो पियोगे , लेकिन कहीं पहली भी आ गयी , तो ? ' हरिधन , ' यह न आयेगी ।हरिधन अपने घर पहुंचा , तो दोनों भाई , भैया आये । भैया आये । ' कहकर भीतर दौड़े और मां को खबर दी । उस पर में क़दम रखते ही हरिधन को ऐसी शान्त महिमा का अनुभव हुआ , मानो वह अपनी मां की गोद में बैठा हुआ है । इतने दिनों ठोकरे खाने में उसका हृदय कोमल हो गया था । जहां पहले अभिमान था , आग्रह था , हेकड़ी थी , वहां अब निराशा थी , पराजय और याचना थी । बीमारी का ज़ोर कम हो चला था , अब उस पर मामूली दवा भी असर कर सकती थी । किले की दीवारे छिद चुकी थीं । अब उसमें घुस जाना असाध्य न था । वहीं घर जिससे वह एक दिन विरक्त हो गया था , अब गोद फैलाये उसे आश्रय देने को तैयार था । हरिवन का निरवलम्ब मन यह आश्रय पाकर , मानो तृप्त हो गया । शाम को विमाता ने कहा , ' बेटा ! तुम घर आ गये , हमारे धन्य भाग । अब इन बच्चों को पालो ।

                         Samsung Galaxy M40 (Midnight Blue, 6GB RAM, 128GB Storage) – Rishi ...

Samsung Galaxy M40 (Midnight Blue, 6GB RAM, 128GB Storage)

                                               Best Publishing Company - [It's Back!] NOAA Diving Manual is Restocked

 मां का नाता न सही , बाप का नाता तो है ही । मुझे एक रोटी दे देना , खाकर एक कोने में पड़ी रहूंगी । तुम्हारी अम्माँ से मेरी बहन का नाता है । उस नाते से तुम लड़के होते हो । ' हरिधन ने मातृ - विहल आंखों से विमाता के रूप में अपनी माता के दर्शन किये । घर के एक - एक कोने में मातृ - स्मृतियों की छटा चांदनी की भांति छिटकी हुई थी , विमाता का प्रौढ़ मुखमण्डल भी उसी छटा से रज्जित था । दूसरे दिन हरिधन फिर कन्धे पर हल रखकर खेत को चला । उसके मुख पर उल्लास था और आंखों में गर्व । वह अब किसी का आश्रित नहीं , आश्रयदाता था , किसी के द्वार का भिक्षुक नहीं , घर का रक्षक था । एक दिन उसने सुना , गुमानी ने दूसरा घर कर लिया । मां से बोला , ' तुमने सुना , काकी ! गुमानी ने घर कर लिया । ' काकी ने कहा , ' घर क्या कर लेगी , ठट्ठा है ! बिरादरी में ऐसा अन्धेर ? पंचायत नहीं , अदालत तो है ? " हरिधन ने कहा , ' नहीं , काकी । बहुत अच्छा हुआ । ला , महावीरजी को लड्डू चढ़ा आऊ । मैं तो डर रहा था , कहीं मेरे गले न आ पड़े । भगवान् ने मेरी सुन ली । मैं वहां से यही ठानकर चला था , अब उसका मुंह न देखूगा ।

Comments

Popular posts from this blog

THAKUR KA KUAN || MUNSHI PREMCHAND SOTORY ||IN ENGLISH

ठाकुर का कुआ || munshi premchand story || in hindi

बेटो वली विदवाह||Munshi preamchand story|| in Hindi || Part - 1||